राज्य विधान परिषद: संरचना, सृजन और कार्य (State Legislative Council: Structure, Creation and Functions)

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1. परिचय (Introduction)

राज्य विधानमंडल का ‘उच्च सदन’ (Upper House) विधान परिषद (Legislative Council) कहलाता है। राज्यसभा की तरह ही यह राज्यों में बड़ों का सदन है। यह सभी राज्यों में अनिवार्य नहीं है। वर्तमान में भारत के केवल 6 राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था (विधान परिषद) है:

वर्तमान में विधान परिषद वाले राज्य:

  1. उत्तर प्रदेश
  2. बिहार
  3. महाराष्ट्र
  4. कर्नाटक
  5. आंध्र प्रदेश
  6. तेलंगाना

2. सृजन और समाप्ति (Creation and Abolition) – अनुच्छेद 169

संविधान का अनुच्छेद 169 संसद को किसी राज्य में विधान परिषद को बनाने (Srisjan) या समाप्त (Utsadan) करने का अधिकार देता है।

प्रक्रिया: यदि संबंधित राज्य की विधानसभा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत (विशेष बहुमत) से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दे, तो संसद साधारण बहुमत से विधान परिषद का गठन या समाप्ति कर सकती है।


3. विधान परिषद की संरचना (Composition) – अनुच्छेद 171

विधान परिषद के सदस्यों की संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई (1/3) से अधिक नहीं होगी, परंतु किसी भी दशा में 40 से कम नहीं होगी।

सदस्यों का निर्वाचन (Election of Members)

इसके सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति’ के द्वारा होता है। चुनाव विभिन्न निर्वाचक मंडलों द्वारा किया जाता है:

अनुपात कौन चुनता है?
1/3 सदस्य राज्य की विधानसभा के सदस्यों (MLAs) द्वारा।
1/3 सदस्य स्थानीय निकायों (नगर पालिका, जिला बोर्ड आदि) द्वारा।
1/12 सदस्य स्नातकों (Graduates) द्वारा (जो 3 वर्ष पहले स्नातक कर चुके हों)।
1/12 सदस्य शिक्षकों द्वारा (जो 3 वर्ष से माध्यमिक स्कूलों या उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ा रहे हों)।
1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत (साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता और समाज सेवा के क्षेत्र से)।

4. योग्यता एवं कार्यकाल

  • आयु: सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए।
  • कार्यकाल: यह एक स्थायी सदन है, इसका विघटन नहीं होता। सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। प्रति दो वर्ष में एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

5. कार्य एवं शक्तियां (Functions and Powers)

संविधान में विधान परिषद को विधानसभा की तुलना में बहुत कम शक्तियां दी गई हैं। इसकी स्थिति ‘सलाहकारी’ अधिक है।

1. विधायी शक्तियां (Legislative Powers)

साधारण विधेयक विधान परिषद में पेश किया जा सकता है। लेकिन यदि विधानसभा ने किसी विधेयक को पारित कर दिया है, तो परिषद उसे केवल रोक सकती है (Delay):

  • पहली बार में: 3 महीने तक।
  • दूसरी बार (यदि विधानसभा दोबारा पास कर दे): 1 महीने तक।
  • कुल देरी: अधिकतम 4 महीने। विधान परिषद किसी विधेयक को समाप्त नहीं कर सकती।

2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)

धन विधेयक (Money Bill) केवल विधानसभा में पेश होता है। विधान परिषद इसे न तो अस्वीकार कर सकती है और न ही इसमें संशोधन कर सकती है। वह इसे केवल 14 दिनों तक रोक सकती है।

6. निष्कर्ष

आलोचक विधान परिषद को ‘सफेद हाथी’ या खर्चीली संस्था कहते हैं, लेकिन इसका महत्व इस बात में है कि यह विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों को (जो प्रत्यक्ष चुनाव नहीं लड़ना चाहते) विधायिका में स्थान देती है और जल्दबाजी में बनाए गए कानूनों पर पुनर्विचार का अवसर प्रदान करती है।

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