2.3. राज्य मंत्रिपरिषद (State Council of Ministers)
भारतीय संविधान में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है, जिसमें राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) वास्तविक कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती है। मंत्रिपरिषद का नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है।
संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)
अनुच्छेद 163: सहायता और सलाह (Aid and Advice)
राज्यपाल को उसके कार्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा। राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा (सिवाय उन मामलों के जहां उसे संविधान द्वारा विवेकाधिकार प्राप्त है)।
अनुच्छेद 164: मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
- नियुक्ति: मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा।
- प्रसादपर्यंत: मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत (Pleasure of the Governor) अपना पद धारण करेंगे।
- सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility): मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा (Legislative Assembly) के प्रति उत्तरदायी होगी। इसका अर्थ है कि यदि विधानसभा किसी एक मंत्री के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव पारित कर देती है, तो पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है।
मंत्रिपरिषद का आकार (Size of the Council of Ministers)
मूल संविधान में मंत्रियों की संख्या निर्धारित नहीं थी, लेकिन 91वें संविधान संशोधन अधिनियम (2003) द्वारा इसे सीमित कर दिया गया:
राज्य मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या, राज्य विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी।
परंतु, किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी।
मंत्रियों की श्रेणियां (Categories of Ministers)
संविधान में मंत्रियों का वर्गीकरण नहीं किया गया है, लेकिन ब्रिटिश संसदीय परंपरा के आधार पर भारत में मंत्रियों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:
1. कैबिनेट मंत्री (Cabinet Ministers)
ये सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होते हैं। इनके पास राज्य सरकार के प्रमुख विभाग (जैसे- गृह, वित्त, शिक्षा) होते हैं। कैबिनेट मंत्री ही सामूहिक रूप से सरकार की नीति निर्धारण के लिए जिम्मेदार होते हैं। वे कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं।
2. राज्य मंत्री (Ministers of State)
इनकी दो स्थितियां हो सकती हैं:
- स्वतंत्र प्रभार (Independent Charge): वे अपने विभाग के प्रमुख होते हैं और कैबिनेट मंत्री के अधीन नहीं होते। वे कैबिनेट की बैठक में तभी भाग लेते हैं जब उनके विभाग से संबंधित मामले पर चर्चा हो रही हो।
- बिना स्वतंत्र प्रभार: वे कैबिनेट मंत्रियों के अधीन कार्य करते हैं और उनकी सहायता करते हैं।
3. उप मंत्री (Deputy Ministers)
इन्हें स्वतंत्र प्रभार नहीं दिया जाता। इनका मुख्य कार्य कैबिनेट मंत्रियों या राज्य मंत्रियों की प्रशासनिक, राजनीतिक और संसदीय कार्यों में सहायता करना है। वे कैबिनेट की बैठकों में शामिल नहीं होते।
मंत्रिपरिषद बनाम मंत्रिमंडल (Council of Ministers vs Cabinet)
| मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) | मंत्रिमंडल (Cabinet) |
|---|---|
| यह एक बड़ा निकाय है (सभी श्रेणियों के मंत्री शामिल)। | यह एक छोटा निकाय है (केवल कैबिनेट मंत्री शामिल)। |
| इसकी बैठकें बहुत कम होती हैं। | यह बार-बार मिलती है और नीतिगत निर्णय लेती है। |
| संवैधानिक निकाय (अनुच्छेद 163, 164 में वर्णित)। | मूल संविधान में शब्द नहीं था (अनुच्छेद 352 में 44वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)। |
शपथ और कार्यकाल
पद ग्रहण करने से पहले राज्यपाल उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है। मंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं होता, वे तब तक पद पर रहते हैं जब तक उन्हें मुख्यमंत्री का विश्वास प्राप्त है। कोई भी मंत्री जो लगातार 6 महीने तक राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं रहता, उसका मंत्री पद समाप्त हो जाता है।
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