लोकसभा अध्यक्ष: भूमिका, शक्तियां, कार्य एवं स्वतंत्रता (Lok Sabha Speaker: Powers, Functions and Independence)

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1. परिचय एवं चुनाव (Introduction & Election)

लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) भारतीय संसद के निचले सदन का पीठासीन अधिकारी होता है। संसदीय लोकतंत्र में अध्यक्ष का पद अत्यंत सम्मान, गरिमा और अधिकार का माना जाता है। वह सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है।

संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 93): संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा अपनी पहली बैठक के पश्चात यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को क्रमशः ‘अध्यक्ष’ और ‘उपाध्यक्ष’ के रूप में चुनेगी।

  • चुनाव: अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा अपने ही बीच से किया जाता है। चुनाव की तारीख राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • कार्यकाल: सामान्यतः अध्यक्ष का कार्यकाल लोकसभा के जीवनकाल (5 वर्ष) तक होता है। हालांकि, नई लोकसभा के गठन के बाद पहली बैठक तक वह अपने पद पर बना रहता है।

2. अध्यक्ष की भूमिका, शक्तियां एवं कार्य (Role, Powers and Functions)

लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां व्यापक हैं, जिन्हें संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया के नियमों और संसदीय परंपराओं से प्राप्त किया गया है। उनके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

सदन की कार्यवाही का संचालन (Conduct of Business)

अध्यक्ष का प्राथमिक कार्य सदन की बैठकों का संचालन करना है। वह यह सुनिश्चित करता है कि कार्यवाही सुचारू रूप से चले। वह सदन के नियमों की व्याख्या करता है, और उसकी व्याख्या अंतिम मानी जाती है। कोरम (गणपूर्ति) के अभाव में (कुल सदस्यों का 1/10) वह सदन की कार्यवाही को स्थगित कर सकता है।

अनुशासन और गरिमा बनाए रखना (Discipline and Decorum)

सदन में व्यवस्था बनाए रखने की अंतिम जिम्मेदारी अध्यक्ष की होती है। यदि कोई सदस्य नियमों का उल्लंघन करता है या सदन की कार्यवाही में बाधा डालता है, तो अध्यक्ष उसे नाम लेकर चेतावनी दे सकता है या सदन से बाहर जाने का आदेश दे सकता है। गंभीर मामलों में वह सदस्य को निलंबित भी कर सकता है।

संसदीय समितियों पर नियंत्रण (Control over Committees)

अध्यक्ष लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के कामकाज का पर्यवेक्षण करता है। वह समितियों के अध्यक्षों (Chairpersons) की नियुक्ति करता है। वह स्वयं ‘कार्य मंत्रणा समिति’ (Business Advisory Committee), ‘नियम समिति’ और ‘सामान्य प्रयोजन समिति’ का अध्यक्ष होता है।


3. अध्यक्ष की विशेष शक्तियां (Special Powers)

(i) धन विधेयक का प्रमाणीकरण (Money Bill Certification)

अनुच्छेद 110 के तहत, कोई विधेयक ‘धन विधेयक’ (Money Bill) है या नहीं, इसका निर्णय करने का अंतिम अधिकार लोकसभा अध्यक्ष के पास है। उनके इस निर्णय को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

(ii) संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता (Presiding over Joint Sitting)

अनुच्छेद 108 के तहत, यदि किसी साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में गतिरोध हो जाए, तो राष्ट्रपति संयुक्त अधिवेशन (Joint Sitting) बुलाता है। इस संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है (न कि उपराष्ट्रपति/राज्यसभा सभापति)।

(iii) दलबदल कानून के तहत अयोग्यता (Disqualification under Defection)

संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत, दलबदल (Anti-defection) के आधार पर किसी सदस्य की अयोग्यता का निर्णय अध्यक्ष करता है। (हालांकि, किहोटो होलोहन मामले (1992) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष का यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है)।


4. अध्यक्ष की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता (Independence and Impartiality)

संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए यह अनिवार्य है कि अध्यक्ष निष्पक्ष हो। वह किसी दल का नहीं, बल्कि पूरे सदन का प्रतिनिधि होता है। संविधान में उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित विशेष प्रावधान किए गए हैं:

(1) कार्यकाल की सुरक्षा (Security of Tenure)

अध्यक्ष को पद से हटाना आसान नहीं है। उसे अनुच्छेद 94 के तहत केवल लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत (Effective Majority) से पारित संकल्प द्वारा ही हटाया जा सकता है। ऐसा प्रस्ताव लाने से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।

(2) वेतन और भत्ते (Salary and Allowances)

अध्यक्ष के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और वे भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) पर भारित होते हैं। इसका अर्थ है कि उन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता, केवल चर्चा हो सकती है।

(3) निर्णायक मत (Casting Vote) – अनुच्छेद 100

निष्पक्षता बनाए रखने के लिए अध्यक्ष सामान्य स्थिति में सदन में मतदान नहीं करता। लेकिन, यदि किसी मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के मत बराबर (Tie) हो जाएं, तो वह ‘निर्णायक मत’ (Casting Vote) का प्रयोग करता है ताकि गतिरोध को समाप्त किया जा सके।

(4) वरीयता क्रम में उच्च स्थान

वरीयता क्रम (Warrant of Precedence) में अध्यक्ष का स्थान बहुत ऊंचा (7वां स्थान) है। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के बराबर और कैबिनेट मंत्रियों से ऊपर होता है। यह पद की महत्ता को दर्शाता है।


5. निष्कर्ष (Conclusion)

पंडित नेहरू ने कहा था, “अध्यक्ष सदन की गरिमा, और उसकी स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है।” लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसद की धुरी है। यद्यपि वह एक राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव जीतता है, लेकिन अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद उससे पूर्ण तटस्थता (Neutrality) और निष्पक्षता की अपेक्षा की जाती है ताकि संसदीय लोकतंत्र सुदृढ़ बना रहे।

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