राज्यपाल

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2.1. राज्यपाल: कार्य एवं शक्तियां (Governor: Functions and Powers)

भारतीय संविधान के भाग 6 (Part VI) में अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य कार्यपालिका का वर्णन किया गया है। राज्यपाल (Governor) राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। राज्य का समस्त प्रशासन राज्यपाल के नाम से ही चलाया जाता है।

संवैधानिक स्थिति (Constitutional Position)

अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। (परंतु 7वें संविधान संशोधन, 1956 के द्वारा एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है)।

अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी, जिसका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा।


राज्यपाल की शक्तियां और कार्य (Powers and Functions of Governor)

राज्यपाल की शक्तियों को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियां।

1. कार्यकारी शक्तियां (Executive Powers)

राज्यपाल राज्य कार्यपालिका का प्रधान होता है। कार्यकारी शक्तियों के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं:

  • नियुक्तियां: राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है और मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है (अनुच्छेद 164)।
  • वह राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General) की नियुक्ति करता है और उसका कार्यकाल व वेतन निर्धारित करता है।
  • वह राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करता है (हालांकि, उन्हें केवल राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है)।
  • अनुच्छेद 356: यदि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है, तो राज्यपाल राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है। राष्ट्रपति शासन के दौरान, राज्यपाल केंद्र के एजेंट के रूप में कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करता है।
  • वह राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (Chancellor) होता है और कुलपतियों (Vice-Chancellors) की नियुक्ति करता है।

2. विधायी शक्तियां (Legislative Powers)

राज्यपाल राज्य विधानमंडल का एक अभिन्न अंग होता है (अनुच्छेद 168)। उसकी विधायी शक्तियां व्यापक हैं:

  • सत्र बुलाना और भंग करना: राज्यपाल राज्य विधानमंडल के सत्र को आहूत (Summon) और सत्रावसान (Prorogue) कर सकता है तथा राज्य विधानसभा को भंग (Dissolve) कर सकता है (अनुच्छेद 174)।
  • संबोधन: प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र और प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र में वह विधानमंडल को संबोधित करता है (अनुच्छेद 176)।
  • विधेयक पर सहमति (अनुच्छेद 200): जब कोई विधेयक विधानमंडल द्वारा पास होकर राज्यपाल के पास आता है, तो वह:
    • विधेयक को स्वीकृति दे सकता है।
    • स्वीकृति रोक सकता है।
    • विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है (धन विधेयक को छोड़कर)।
    • विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है (अनुच्छेद 201)।
  • अध्यादेश जारी करना (अनुच्छेद 213): जब विधानमंडल का सत्र नहीं चल रहा हो और किसी कानून की तत्काल आवश्यकता हो, तो राज्यपाल अध्यादेश (Ordinance) जारी कर सकता है। यह अध्यादेश 6 सप्ताह के भीतर विधानमंडल द्वारा अनुमोदित होना आवश्यक है।

3. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)

  • धन विधेयक (Money Bill): राज्य विधानसभा में धन विधेयक केवल राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही पेश किया जा सकता है।
  • बजट: वह सुनिश्चित करता है कि ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ (राज्य बजट) विधानमंडल के समक्ष रखा जाए (अनुच्छेद 202)।
  • अनुदान की मांग: कोई भी अनुदान की मांग राज्यपाल की सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती।
  • आकस्मिकता निधि: किसी अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए वह ‘राज्य की आकस्मिकता निधि’ (Contingency Fund) से अग्रिम धन दे सकता है।
  • वह राज्य वित्त आयोग का गठन करता है जो पंचायतों और नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करता है।

4. न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers)

अनुच्छेद 161 के तहत, राज्यपाल को क्षमादान की शक्ति प्राप्त है। वह राज्य विधि के तहत किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को:

  • क्षमा (Pardon) कर सकता है।
  • प्रविलंबन (Reprieve) कर सकता है।
  • विराम (Respite) या परिहार (Remission) कर सकता है।

नोट: राज्यपाल मृत्युदंड (Death Sentence) को पूरी तरह माफ नहीं कर सकता (यह शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास है) और न ही वह कोर्ट मार्शल (सेन्य न्यायालय) के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है।

5. विवेकाधिकार शक्तियां (Discretionary Powers)

संविधान में राज्यपाल को कुछ स्थितियों में अपने विवेक (Discretion) का प्रयोग करने की शक्ति दी गई है (अनुच्छेद 163):

  • किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना।
  • राज्य में राष्ट्रपति शासन (Article 356) लगाने की सिफारिश करना।
  • त्रिशंकु विधानसभा (Hung Assembly) की स्थिति में मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना।
  • यदि मंत्रिपरिषद विधानसभा में बहुमत खो दे, तो उसे बर्खास्त करना या विधानसभा को भंग करना।

निष्कर्ष

राज्यपाल राज्य शासन की धुरी है। यद्यपि वह नाममात्र का प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है, लेकिन संघीय ढांचे में उसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह केंद्र और राज्य के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी (Link) के रूप में कार्य करता है।

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