विषय 2: बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था और भारत (Multi-polar World Order and India)
21वीं सदी की वैश्विक भू-राजनीति (Geopolitics) में सबसे युगांतरकारी परिवर्तन “एक-ध्रुवीय” (Unipolar) दुनिया से “बहु-ध्रुवीय” (Multi-polar) व्यवस्था की ओर संक्रमण है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद लगभग तीन दशकों तक संयुक्त राज्य अमेरिका का निर्विवाद वर्चस्व रहा, जिसे ‘पैक्स अमेरिकाना’ कहा गया। लेकिन अब शक्ति के केंद्र बदल रहे हैं। चीन का उदय, रूस का पुनरुत्थान, और भारत, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका जैसी शक्तियों का उभार यह दर्शाता है कि अब दुनिया किसी एक देश के इशारे पर नहीं चल सकती।
भारत न केवल इस बहु-ध्रुवीय व्यवस्था का मूक दर्शक है, बल्कि वह इसका एक सक्रिय वास्तुकार (Architect) है। भारत का स्पष्ट मानना है कि एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था के लिए बहु-ध्रुवीयता आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कई मंचों पर दोहराया है कि “एशिया की बहु-ध्रुवीयता के बिना विश्व की बहु-ध्रुवीयता संभव नहीं है।”
1. बहु-ध्रुवीयता की अवधारणा और भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण
बहु-ध्रुवीयता का अर्थ केवल कई शक्तियों का होना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ अंतर्राष्ट्रीय निर्णय आम सहमति, कानून के शासन और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित होते हैं। भारत के लिए, यह एक रणनीतिक अवसर है।
गुटनिरपेक्षता से बहु-संरेखण तक (From Non-Alignment to Multi-Alignment):
- ऐतिहासिक संदर्भ: शीत युद्ध के दौरान, भारत ने गुटनिरपेक्षता (NAM) की नीति अपनाई थी ताकि वह अमेरिका या सोवियत संघ के गुटों में फंसकर अपनी स्वतंत्रता न खो दे। उस समय का उद्देश्य ‘दूरी बनाए रखना’ था।
- वर्तमान नीति (बहु-संरेखण): आज की दुनिया में भारत की नीति ‘बहु-संरेखण’ (Multi-alignment) की है। इसका अर्थ है “सबके साथ जुड़ना, लेकिन अपनी शर्तों पर।” भारत एक ही समय में अमेरिका के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है और रूस के साथ ऊर्जा व्यापार कर रहा है। यह विरोधाभास नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास का प्रतीक है।
- विषय-आधारित गठबंधन: अब भारत स्थायी दोस्त या दुश्मन बनाने के बजाय ‘मुद्दों’ पर ध्यान केंद्रित करता है। तकनीक के लिए भारत पश्चिम (West) की ओर देखता है, ऊर्जा और रक्षा स्पेयर पार्ट्स के लिए रूस की ओर, और ग्लोबल साउथ के विकास के लिए अफ्रीका और एशिया की ओर।
2. रणनीतिक स्वायत्तता: भारतीय विदेश नीति की रीढ़
बहु-ध्रुवीय दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में दिखाया है कि वह किसी भी महाशक्ति के दबाव में झुके बिना अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है। इसे ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) कहा जाता है।
उदाहरण और केस स्टडीज:
- रूस-यूक्रेन संघर्ष और तेल कूटनीति: फरवरी 2022 के बाद, जब पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए, तो भारत पर भी रूस से संबंध तोड़ने का भारी दबाव था। लेकिन भारत ने अपने नागरिकों के हितों को सर्वोपरि रखा। भारत ने रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदना जारी रखा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यूरोप को आईना दिखाते हुए कहा कि “यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि यूरोप की समस्याएं दुनिया की समस्याएं हैं, लेकिन दुनिया की समस्याएं यूरोप की नहीं।” इस साहसिक कदम ने भारत की मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की।
- रक्षा सौदे (S-400 मिसाइल सिस्टम): अमेरिका के CAATSA (प्रतिबंध कानून) की धमकी के बावजूद, भारत ने अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद को पूरा किया। यह साबित करता है कि भारत अपनी रक्षा नीति वॉशिंगटन या बीजिंग में तय नहीं करता, बल्कि नई दिल्ली में तय करता है।
3. ग्लोबल साउथ की बुलंद आवाज़ (Voice of the Global South)
दुनिया अमीर ‘ग्लोबल नॉर्थ’ और विकासशील ‘ग्लोबल साउथ’ में बंटी हुई है। चीन खुद को ग्लोबल साउथ का नेता बताता रहा है, लेकिन उसकी ‘ऋण-जाल कूटनीति’ (Debt Trap Diplomacy) ने उसे अलोकप्रिय बना दिया है। इस शून्य को भरने के लिए भारत आगे आया है।
- G20 अध्यक्षता (2023) – एक गेम चेंजर: भारत ने अपनी G20 अध्यक्षता को केवल बड़े देशों की बैठक नहीं रहने दिया। भारत ने “वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट” का आयोजन किया, जिसमें 125 देशों ने भाग लिया। भारत ने इन देशों की समस्याओं (कर्ज, खाद्य संकट, जलवायु परिवर्तन) को G20 के एजेंडे में सबसे ऊपर रखा।
- अफ़्रीकी संघ (AU) की सदस्यता: भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत अफ़्रीकी संघ को G20 का स्थायी सदस्य बनाना था। इससे 55 अफ्रीकी देशों को वैश्विक मंच पर पहली बार इतना बड़ा प्रतिनिधित्व मिला। इसने भारत को अफ्रीका का सच्चा मित्र साबित किया।
- मानवीय सहायता और ‘फर्स्ट रेस्पोंडर’: तुर्की में भूकंप हो, मालदीव में जल संकट हो, या श्रीलंका का आर्थिक पतन—भारत हमेशा मदद के लिए सबसे पहले पहुँचता है। ‘ऑपरेशन दोस्त’ और ‘वैक्सीन मैत्री’ ने भारत की छवि एक ‘विश्व-बंधु’ (दुनिया का मित्र) के रूप में बनाई है।
4. सुधारित बहुपक्षवाद (Reformed Multilateralism)
भारत का मानना है कि 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनाए गए संस्थान (जैसे UN, IMF, World Bank) आज की 21वीं सदी की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते। उस समय 50 देश थे, आज 193 से अधिक हैं। इसलिए, भारत “सुधारित बहुपक्षवाद” की मांग कर रहा है।
- UNSC में स्थायी सीट की दावेदारी: भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके बिना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की कोई विश्वसनीयता नहीं है। भारत G4 देशों (ब्राजील, जर्मनी, जापान) के साथ मिलकर वीटो पावर के एकाधिकार को चुनौती दे रहा है।
- वित्तीय संस्थानों का लोकतंत्रीकरण: विश्व बैंक और IMF में अमेरिका और यूरोप का वर्चस्व है। भारत मांग कर रहा है कि इन संस्थाओं में विकासशील देशों को अधिक कोटा और वोटिंग अधिकार मिले ताकि उन्हें कर्ज के लिए अपमानजनक शर्तों का सामना न करना पड़े।
5. प्रमुख समूहों में संतुलनकारी भूमिका (Bridging Power)
बहु-ध्रुवीयता का अर्थ है विभिन्न ध्रुवों के बीच संतुलन बनाना। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो प्रतिद्वंद्वी समूहों में समान रूप से सक्रिय है।
A. क्वाड (QUAD) और इंडो-पैसिफिक:
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘क्वाड’ का सदस्य है। इसका उद्देश्य चीन के आक्रामक विस्तारवाद को रोकना और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। भारत के लिए, क्वाड एक सैन्य गठबंधन नहीं, बल्कि तकनीक और सुरक्षा का मंच है।
B. ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO):
दूसरी ओर, भारत ‘ब्रिक्स’ और ‘SCO’ का भी संस्थापक सदस्य है, जहाँ चीन और रूस प्रमुख हैं। भारत इनका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए करता है कि ये मंच पूरी तरह से ‘पश्चिम-विरोधी’ न बन जाएं। ब्रिक्स के हालिया विस्तार में भारत ने यह सुनिश्चित किया कि निर्णय सर्वसम्मति से हों, न कि केवल चीन की मर्जी से।
6. आर्थिक बहु-ध्रुवीयता और भविष्य की राह
सच्ची बहु-ध्रुवीयता तब तक नहीं आ सकती जब तक दुनिया केवल एक मुद्रा (अमेरिकी डॉलर) पर निर्भर है। भारत इस आर्थिक एकाधिकार को तोड़ने का प्रयास कर रहा है।
- रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण: भारत ने 22 से अधिक देशों के साथ रुपये में व्यापार (Rupee Trade Settlement) शुरू किया है। रूस, यूएई और श्रीलंका जैसे देशों के साथ यह सफल रहा है। इससे डॉलर की कमी होने पर भी व्यापार नहीं रुकता।
- डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (UPI): भारत का यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) दुनिया की सबसे सफल डिजिटल भुगतान प्रणाली बन गया है। फ्रांस, सिंगापुर और यूएई के साथ जुड़कर भारत ने पश्चिम की स्विफ्ट (SWIFT) प्रणाली का एक सस्ता और तेज विकल्प पेश किया है।
निष्कर्ष:
आज का भारत ‘एक तरफ चुनने’ के लिए मजबूर नहीं है, बल्कि वह खुद एक ‘ध्रुव’ है जिसे दुनिया चुन रही है। भारत की बहु-ध्रुवीयता टकराव की नहीं, बल्कि समन्वय की है। यह प्राचीन भारतीय दर्शन ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) का आधुनिक कूटनीतिक रूप है। भारत एक ऐसी विश्व व्यवस्था का निर्माण कर रहा है जहाँ शक्ति का सम्मान हो, लेकिन नियमों की अवहेलना न हो। यही ‘न्यू इंडिया’ की वैश्विक पहचान है।
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