प्लेटो का साम्यवाद: आदर्श राज्य मे ं संरक्षक वर्ग के लिए त्याग और व्यवस्था

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📜 प्लेटो का साम्यवाद: आदर्श राज्य की नींव 📜

प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध कृति **’रिपब्लिक’** में एक ऐसे आदर्श राज्य की कल्पना की, जहाँ न्याय सर्वोच्च होगा। इस न्याय को प्राप्त करने और संरक्षक वर्ग (शासक तथा सैनिक) को स्वार्थ से दूर रखने के लिए, उन्होंने साम्यवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। यह सिद्धांत उनके **न्याय** और **शिक्षा** व्यवस्था का व्यावहारिक परिणाम था।

1. संपत्ति का साम्यवाद (धन का त्याग)

यह साम्यवाद केवल **संरक्षक वर्ग** पर लागू होता है। प्लेटो का मानना था कि निजी संपत्ति शासकों को भ्रष्ट करती है और उन्हें सार्वजनिक कर्तव्यों से विमुख करती है। यदि शासक धन संचय के लोभ में पड़ जाएंगे, तो वे न्यायपूर्ण शासन नहीं कर पाएंगे।

  • 🪙 **निजी स्वामित्व का निषेध:** संरक्षक वर्ग को किसी भी प्रकार की निजी संपत्ति, सोना, चाँदी या बहुमूल्य वस्तुएँ रखने की अनुमति नहीं होगी।
  • 🏠 **सामूहिक जीवन:** वे साधारण बैरकों में रहेंगे और एक साथ भोजन करेंगे। उनका जीवन संयमित और सादा होगा।
  • 🛡️ **उद्देश्य:** इसका मुख्य उद्देश्य शासकों को आर्थिक चिंता और व्यक्तिगत स्वार्थ से मुक्त करना था, ताकि उनका एकमात्र ध्यान राज्य के कल्याण पर केंद्रित रहे।

2. पत्नियों एवं बच्चों का साम्यवाद (परिवार का उन्मूलन)

प्लेटो के अनुसार, पारिवारिक मोह भी सार्वजनिक कर्त्तव्यों के मार्ग में बड़ी बाधा है। शासक अपने बच्चों और परिवार के लिए विशेष सुविधाएँ जुटाने लगेंगे, जिससे राज्य में भ्रष्टाचार और गुटबाजी बढ़ेगी। इसे समाप्त करने के लिए उन्होंने निजी परिवार संस्था को ही समाप्त करने का प्रस्ताव रखा।

  1. **अस्थायी संबंध:** संरक्षक वर्ग के स्त्री-पुरुषों के बीच कोई स्थायी विवाह संबंध नहीं होगा। राज्य आवश्यकतानुसार, सर्वोत्तम संतान पैदा करने के उद्देश्य से सहवास की व्यवस्था करेगा।
  2. **राज्य की संतानें:** उत्पन्न होने वाले बच्चों को तत्काल माता-पिता से अलग कर दिया जाएगा। सभी बच्चे राज्य की समान संपत्ति होंगे। कोई भी माता-पिता अपनी संतान को नहीं जानेगा (और न ही इसके विपरीत)।
  3. **नारी मुक्ति:** यह सिद्धांत महिलाओं को भी घरेलू बंधन से मुक्त करता है, जिससे वे पुरुषों के समान ही राज्य के शासन और सुरक्षा में भाग ले सकें।

आलोचना: अरस्तू और आधुनिक दृष्टिकोण

📢 अरस्तू द्वारा आलोचना:

  • **मानव प्रकृति के विरुद्ध:** अरस्तू ने तर्क दिया कि निजी संपत्ति और परिवार मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ हैं। इन्हें जबरन समाप्त करना मानवीय मनोविज्ञान के विरुद्ध है।
  • **एकता नहीं, अपितु उदासीनता:** पत्नियों के साम्यवाद से राज्य में एकता नहीं आती, बल्कि बच्चे “सबके” होने के कारण “किसी के नहीं” हो जाते हैं, जिससे उनके प्रति उदासीनता पैदा होती है।

📢 आधुनिक आलोचना:

  • **अधूरा साम्यवाद:** यह सिद्धांत उत्पादक वर्ग पर लागू नहीं होता, जो इसे वर्ग-विभेदकारी (Class-discriminatory) बनाता है।
  • **अव्यवहारिक:** यह योजना अत्यंत अव्यवहारिक है और परिवार संस्था के नैतिक एवं सामाजिक महत्व को पूरी तरह से नकारती है।

निष्कर्ष

इन आलोचनाओं के बावजूद, प्लेटो का साम्यवाद का सिद्धांत इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि **शक्ति का विकेंद्रीकरण** करने के लिए शासक वर्ग को स्वार्थ से कितना दूर रहना आवश्यक है। प्लेटो का साम्यवाद **त्याग (Renunciation)** पर आधारित एक राजनीतिक और नैतिक सिद्धांत है, न कि आर्थिक समानता पर आधारित आधुनिक मार्क्सवादी सिद्धांत।

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