अरस्तू की नागरिकता संबंधी अवधारणा: सक्रिय भागीदारी, फुर्सत और अपवर्जित वर्ग का गहन विश्लेषण (UPSC)

Written by:

👤 अरस्तू की नागरिकता संबंधी अवधारणा: विशेषाधिकार, फुर्सत और सक्रिय जीवन 👤

परिचय: यूनानी ‘पॉलिस’ में नागरिकता का महत्व

प्राचीन यूनानी नगर-राज्य (Polis) में नागरिकता (Citizenship) का अर्थ केवल कानूनी दर्जा नहीं था, बल्कि यह एक श्रेष्ठ सामाजिक और राजनीतिक पदवी थी। अरस्तू ने अपने ग्रंथ **’पॉलिटिक्स’** में स्पष्ट किया कि नागरिकता का निर्धारण किसी व्यक्ति के निवास स्थान (Residence) या जन्म (Birth) से नहीं होता, बल्कि राज्य के सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी से होता है।

नागरिकता की परिभाषा: सक्रियता का सिद्धांत

अरस्तू नागरिकता को एक **कार्यात्मक (Functional) परिभाषा** देते हैं। उनके अनुसार, नागरिक वह व्यक्ति है:

“वह व्यक्ति नागरिक है जिसके पास बिना किसी सीमा के, विधायी और न्यायिक दोनों प्रकार के सार्वजनिक कार्यालयों (Public Offices) में भाग लेने का अधिकार हो।”

इस परिभाषा के मुख्य दो घटक हैं:

  • न्यायिक कार्य: न्यायाधीश या न्यायमंडल के सदस्य के रूप में न्याय प्रशासन में भाग लेना।
  • विधायी/कार्यकारी कार्य: सार्वजनिक नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में भाग लेना।

आवश्यक शर्तें: ‘फुर्सत’ (Leisure) और गुण

शासन के कार्यों में भाग लेने के लिए व्यक्ति को दो मुख्य शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:

1. फुर्सत (Leisure):

अरस्तू के अनुसार, नागरिकता के लिए शारीरिक श्रम से मुक्ति आवश्यक है। जो व्यक्ति दैनिक आवश्यकताओं (उत्पादन) को पूरा करने में व्यस्त है, उसके पास विवेकपूर्ण चिंतन और शासन के जटिल कार्यों के लिए समय नहीं होगा। यह फुर्सत दासता द्वारा सुनिश्चित की जाती थी।

2. सद्गुण (Virtue):

नागरिक में शासन करने और शासित होने (Ruling and Being Ruled) दोनों का गुण होना चाहिए। वह व्यक्ति जो सद् जीवन जीने में सक्षम है, वही नागरिक हो सकता है।

नागरिकता से अपवर्जित वर्ग (Excluded Classes)

उपरोक्त शर्तों के कारण, अरस्तू ने यूनानी नगर-राज्य की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को नागरिकता के अधिकार से वंचित रखा। यह विभाजन अत्यंत संकीर्ण और अलोकतांत्रिक था:

  • दास और विदेशी: दास स्वाभाविक रूप से अयोग्य थे, जबकि विदेशियों में राज्य के प्रति निष्ठा का अभाव था।
  • शिल्पकार (Artisans) और मजदूर: ये शारीरिक श्रम में संलग्न होने के कारण फुर्सत और नैतिक विकास से वंचित थे। अरस्तू इन्हें ‘केवल उपकरण’ मानते थे।
  • महिलाएँ: इन्हें घरेलू कार्यों तक सीमित रखा गया और सार्वजनिक जीवन के लिए अनुपयुक्त माना गया।
  • बच्चे और वृद्ध: बच्चे अपूर्ण नागरिक थे और वृद्ध अक्षम।

निष्कर्ष: नागरिकता का संकीर्ण विचार और प्रासंगिकता

अरस्तू की नागरिकता की अवधारणा आज के सार्वभौमिक नागरिकता (Universal Citizenship) के विपरीत है और यह केवल एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के लिए थी। हालाँकि, यह आधुनिक लोकतंत्र को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है: नागरिकता केवल कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि राज्य के प्रति नैतिक जिम्मेदारी और सक्रिय राजनीतिक भागीदारी की मांग करती है। अरस्तू के लिए, एक अच्छा नागरिक बनने के लिए एक अच्छा इंसान (नैतिक व्यक्ति) होना आवश्यक है।

Leave a comment