रौलट एक्ट (1919) : एक विस्तृत विवरण
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रौलट एक्ट, जिसे आधिकारिक तौर पर “अनार्चिकल क्रिमिनल्स एक्ट, 1919” कहा जाता था, ब्रिटिश भारत की एक कुख्यात कानून थी। इसका नाम सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता वाली समिति के नाम पर रखा गया था। इस अधिनियम ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया और महात्मा गांधी को एक राष्ट्रव्यापी नेता के रूप में उभरने का मौका दिया।
1. रौलट एक्ट लाने के कारण
- प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव: युद्ध के बाद स्वशासन का वादा पूरा नहीं हुआ, जिससे असंतोष फैला।
- क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि: ब्रिटिश सरकार उन्हें दबाना चाहती थी।
- डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट (1915) की समाप्ति: सरकार चाहती थी वही विशेष शक्तियाँ शांतिकाल में भी बनी रहें।
- भारत में बढ़ता राष्ट्रवाद: होम रूल लीग, लखनऊ समझौता और सुधारों की बहस से सरकार चिंतित थी।
2. किसने सुझाव दिया और किसने समर्थन किया?
➡ सुझाव देने वाला: सर सिडनी रौलट समिति (1917) ने दिया, रिपोर्ट 1918 में पेश हुई।
➡ समर्थन करने वाले: ब्रिटिश सरकार और इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के ब्रिटिश सदस्य।
➡ विरोध करने वाले: मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, मजहरुल हक और तेज बहादुर सप्रू। जिन्ना ने विरोध में इस्तीफा दिया।
3. रौलट एक्ट के मुख्य प्रावधान
- बिना मुकदमे के गिरफ्तारी और अनिश्चितकालीन हिरासत।
- जमानत और अपील का अधिकार न होना।
- विशेष अदालतें, बंद कमरे में मुकदमा।
- न्यायिक प्रक्रिया का निलंबन।
- प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप।
4. रौलट एक्ट के परिणाम
- देशव्यापी विरोध और आक्रोश।
- गांधीजी का पहला अखिल भारतीय सत्याग्रह।
- 6 अप्रैल 1919 की देशव्यापी हड़ताल।
- 13 अप्रैल 1919 का जलियांवाला बाग हत्याकांड।
- गांधीजी का “कैसर-ए-हिंद” खिताब लौटाना।
- 1920-22 असहयोग आंदोलन की नींव।
- भारतीय राजनीति का कट्टरपंथीकरण।
5. निष्कर्ष
रौलट एक्ट ब्रिटिश सरकार की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी। यह अधिनियम भारतीयों को एकजुट करने और गांधीजी को राष्ट्रीय नेता बनाने का कारण बना। “अपराध रोकने” के नाम पर बनाया गया यह कानून अंततः ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सबसे बड़ा राजनीतिक अपराध साबित हुआ।
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