समानता का अधिकार: अनुच्छेद 14–18 की आसान व्याख्या | भारतीय संविधान

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समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14–18)

समानता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14–18 में निहित है। इसका उद्देश्य है—हर व्यक्ति को कानूनी समानतासम्मान मिले, राज्य अनुचित भेदभाव न करे, सार्वजनिक रोजगार में निष्पक्ष अवसर हों, अस्पृश्यता का अंत हो और ऐसी उपाधियाँ समाप्त हों जो सामाजिक पदानुक्रम बनाएँ।

अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता

मूल पाठ (सरल)

राज्य भारत की सीमा के भीतर किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

संक्षिप्त व्याख्या

कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और समान परिस्थिति वालों के साथ समान व्यवहार होगा। भिन्न परिस्थिति में उचित वर्गीकरण (जैसे बाल अपराजितों के लिए अलग न्याय-प्रणाली) मान्य है।

दृष्टिकोण: ई.पी. रॉयप्पा बनाम तमिलनाडु (1974)—समानता का विपरीत मनमानी; इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975)—उच्च पद भी कानून के अधीन।

  • कानून के समक्ष कोई विशेषाधिकार नहीं।
  • उचित वर्गीकरण स्वीकृत (जैसे किशोर न्याय)।
  • लक्ष्य: राज्य की मनमानी रोकना।

अनुच्छेद 15 – भेदभाव का निषेध

मूल पाठ (सरल)

राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, वर्ण, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा; किन्तु महिलाएँ, बच्चे, सामाजिक-शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति/जनजाति हेतु विशेष प्रावधान कर सकता है।

विस्तृत व्याख्या

अनुच्छेद 15 सार्वजनिक स्थानों, शिक्षा और कल्याण योजनाओं में पहचान-आधारित बहिष्कार को रोकता है। वास्तविक समानता पाने के लिए यह सकारात्मक भेदभाव (आरक्षण, छात्रवृत्ति, छात्रावास, महिलाओं हेतु विशेष व्यवस्था) की अनुमति देता है—उद्देश्य है सबको समान शुरुआती रेखा पर लाना।

महत्वपूर्ण केस: चंपकम दुरईराजन (1951) के बाद पहला संशोधन; इंद्रा साहनी (1992) ने 27% ओबीसी आरक्षण को मानते हुए कुल सीमा सामान्यतः 50% बताई।

  • धर्म/जाति/लिंग/जन्मस्थान पर भेदभाव वर्जित।
  • आरक्षण/विशेष प्रावधान संवैधानिक हैं।
  • लक्ष्य: वास्तविक (Substantive) समानता

अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता

मूल पाठ (सरल)

सार्वजनिक रोजगार में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर; धर्म, जाति, लिंग, वंश, जन्मस्थान या निवास के आधार पर भेदभाव नहीं। पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति/जनजाति हेतु विशेष प्रावधान व कुछ पदों में उचित निवास-नियम संभव।

विस्तृत व्याख्या

सरकारी नौकरियाँ सभी के लिए खुली और योग्यता-आधारित हों; साथ ही ऐतिहासिक वंचना को ध्यान में रखकर SC/ST/OBC के लिए आरक्षण दिया जा सकता है। कुछ स्थानीय पदों में निवास सम्बंधी नियम भी वैध हो सकते हैं। दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए आयु-छूट जैसी व्यवस्थाएँ समानता का विस्तार हैं, उल्लंघन नहीं।

महत्वपूर्ण केस: इंद्रा साहनी (1992) ने सिद्धांत तय किए; बाद के संशोधन व एम.एन. नागराज (2006) ने शर्तों सहित पदोन्नति में आरक्षण को मान्यता दी।

  • खुली प्रतियोगिता + योग्यता, पर सामाजिक न्याय भी।
  • SC/ST/OBC हेतु आरक्षण—सीमित व तर्कसंगत।
  • कुछ स्थानीय पदों में निवास-आधारित प्राथमिकता संभव।

अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का उन्मूलन

मूल पाठ (सरल)

“अस्पृश्यता” का उन्मूलन किया जाता है और उसका कोई भी रूप निषिद्ध है; उससे उत्पन्न किसी भी अक्षमता का प्रवर्तन दंडनीय अपराध होगा।

विस्तृत व्याख्या

मंदिर, कुएँ, विद्यालय या सार्वजनिक स्थानों में जाति-आधारित बहिष्कार पूर्णतः अवैध है। इसे सिविल राइट्स एक्ट 1955 और अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 द्वारा सख्ती से लागू किया जाता है—सामाजिक गरिमा की कानूनी सुरक्षा

  • अस्पृश्यता पूर्णतः समाप्त; दंडनीय अपराध।
  • विशेष आपराधिक कानूनों से प्रवर्तन।
  • सामाजिक व धार्मिक जीवन में समान भागीदारी।

अनुच्छेद 18 – उपाधियों का उन्मूलन

मूल पाठ (सरल)

राज्य उपाधियाँ प्रदान नहीं करेगा (शैक्षिक/सैनिक उपाधियाँ छोड़कर)। कोई नागरिक विदेशी राज्य से उपाधि नहीं लेगा; पदधारी बिना अनुमति विदेशी उपाधि/उपहार स्वीकार नहीं करेगा।

विस्तृत व्याख्या

औपनिवेशिक दौर की “सर”, “राय बहादुर” जैसी उपाधियाँ सामाजिक ऊँच-नीच बनाती थीं; संविधान ने इन्हें समाप्त कर समान नागरिकता को सुरक्षित किया। डॉक्टर/प्रोफेसर/जनरल जैसी शैक्षिक/सैनिक उपाधियाँ मान्य हैं। बलाजी राघवन बनाम भारत संघ (1996) के अनुसार भारत रत्न/पद्म पुरस्कार सम्मान हैं, “उपाधि” नहीं; इन्हें आधिकारिक उपसर्ग की तरह नहीं लिखा जाएगा।

  • वंशानुगत/राजसी उपाधियाँ समाप्त।
  • केवल शैक्षिक व सैनिक उपाधियाँ मान्य।
  • राष्ट्रीय सम्मान—उपाधि नहीं; कोई आधिकारिक उपसर्ग नहीं।
निष्कर्ष: अनुच्छेद 14–18 समानता को व्यवहारिक बनाते हैं—मनमानी पर रोक, भेदभाव का निषेध, रोजगार में निष्पक्ष अवसर, अस्पृश्यता का अंत और उपाधियों का उन्मूलन।

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