अनुच्छेद 13 : मौलिक अधिकारों की संरक्षा का आधार
भारतीय संविधान का भाग-III मौलिक अधिकारों को नागरिकों के लिए सुनिश्चित करता है।
इन अधिकारों की रक्षा और उन्हें प्रभावी बनाने का कार्य अनुच्छेद 13 करता है।
यह अनुच्छेद स्पष्ट करता है कि संसद और राज्य विधानमंडल कोई ऐसा कानून नहीं बना सकते
जो मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो। यदि ऐसा कोई कानून पहले से है या बाद में बनाया जाता है,
तो वह कानून उस सीमा तक शून्य (void) हो जाएगा।
अनुच्छेद 13 की संवैधानिक भाषा (Bare Act)
- अनुच्छेद 13(1): संविधान लागू होने से पहले जो भी कानून भारत में प्रभावी थे,
यदि वे मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हैं तो वे शून्य माने जाएंगे। - अनुच्छेद 13(2): संविधान लागू होने के बाद राज्य कोई ऐसा कानून नहीं बनाएगा
जो मौलिक अधिकारों को कम करे या उनसे असंगत हो। - अनुच्छेद 13(3): “कानून” में अधिनियम, आदेश, नियम, उपनियम, विनियम आदि सब सम्मिलित होंगे।
- अनुच्छेद 13(4): 24वें संशोधन (1971) द्वारा जोड़ा गया – संविधान संशोधन को “कानून” नहीं माना जाएगा।
अनुच्छेद 13 का महत्व
यह अनुच्छेद केवल एक प्रावधान नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा की ढाल है।
यह Judicial Review (न्यायिक समीक्षा) की नींव है जिसके अंतर्गत न्यायपालिका
संसद और राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों की जांच करती है।
अनुच्छेद 13 ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को व्यावहारिक (justiciable) बनाया और उन्हें केवल घोषणात्मक अधिकार न रहने दिया।
प्रमुख न्यायिक व्याख्याएँ और केस लॉ
- A.K. Gopalan v. State of Madras (1950): कोर्ट ने मौलिक अधिकारों को अलग-अलग (isolated) माना।
यानी यदि व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 21) का हनन हो तो उसे केवल 21 के तहत ही चुनौती दी जा सकती है,
14 या 19 से जोड़कर नहीं। बाद में यह दृष्टिकोण पलट गया। - Champakam Dorairajan v. State of Madras (1951): कोर्ट ने कहा कि
Directive Principles मौलिक अधिकारों के अधीन हैं। इससे पहला संविधान संशोधन (1951) आया। - Golaknath v. State of Punjab (1967): 11 जजों की पीठ ने 6:5 से फैसला दिया कि
संसद मौलिक अधिकारों को संशोधित नहीं कर सकती। यहाँ संविधान संशोधन को भी “कानून” माना गया। - 24वाँ संशोधन (1971): अनुच्छेद 13(4) जोड़ा गया और कहा गया कि
संविधान संशोधन को “कानून” नहीं माना जाएगा। - Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973):
कोर्ट ने कहा कि संसद को संविधान संशोधन का अधिकार है लेकिन वह Basic Structure को नहीं बदल सकती। - Minerva Mills v. Union of India (1980): संशोधन शक्ति सीमित है और
मौलिक अधिकार व नीति निर्देशक सिद्धांतों में संतुलन होना चाहिए। - NJAC Case (2015): सुप्रीम कोर्ट ने 99वें संशोधन को रद्द कर दिया क्योंकि उसने न्यायपालिका की स्वतंत्रता (basic structure) को प्रभावित किया।
व्यावहारिक प्रभाव और ग्राउंड रियलिटी
भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में अनुच्छेद 13 की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सरकारें अक्सर जनहित और सुरक्षा के नाम पर ऐसे कानून बनाती हैं जो नागरिकों की स्वतंत्रताओं पर अंकुश लगाते हैं।
न्यायपालिका बार-बार इस अनुच्छेद का उपयोग करके संतुलन बनाती है।
उदाहरण के लिए, ADM Jabalpur (1976) केस में कोर्ट ने सरकार का समर्थन किया था
लेकिन बाद में Puttaswamy v. Union of India (2017) में इसे पलट दिया गया और
Right to Privacy को मौलिक अधिकार घोषित किया।
अनुच्छेद 13 और संशोधन बहस
24वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 13(4) जोड़ा गया ताकि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सके।
लेकिन 1973 में केशवानंद भारती केस ने स्पष्ट कर दिया कि संशोधन शक्ति असीमित नहीं है।
संसद अब भी संशोधन कर सकती है लेकिन यदि वह संविधान की मूल संरचना को नष्ट करता है
तो सुप्रीम कोर्ट उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
यही कारण है कि 2015 में NJAC संशोधन को निरस्त कर दिया गया।
UGC NET के लिए Objective Questions
प्रश्न 1: अनुच्छेद 13 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(A) Directive Principles को लागू करना
(B) मौलिक अधिकारों की रक्षा करना
(C) संसद की संप्रभुता सुनिश्चित करना
(D) राष्ट्रपति की शक्तियों को बढ़ाना
सही उत्तर: (B)
प्रश्न 2: Golaknath केस (1967) में सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्णय था?
(A) संसद मौलिक अधिकारों को संशोधित कर सकती है
(B) संसद मौलिक अधिकारों को संशोधित नहीं कर सकती
(C) मौलिक अधिकार केवल नागरिकों पर लागू होते हैं
(D) Directive Principles मौलिक अधिकारों से ऊपर हैं
सही उत्तर: (B)
प्रश्न 3: NJAC केस (2015) को असंवैधानिक क्यों घोषित किया गया?
(A) यह अनुच्छेद 13(2) का उल्लंघन करता था
(B) इसने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित किया जो Basic Structure का हिस्सा है
(C) इसमें राष्ट्रपति को अत्यधिक शक्तियाँ दी गईं
(D) यह संसद की संप्रभुता के खिलाफ था
सही उत्तर: (B)
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