भारत की विदेश नीति : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, निरंतरता और परिवर्तन

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प्रस्तावना

भारत की विदेश नीति (Foreign Policy of India) केवल कूटनीति का औजार नहीं है, बल्कि यह भारत की सभ्यतागत परंपराओं, स्वतंत्रता संग्राम की आकांक्षाओं और बदलते वैश्विक परिदृश्य का प्रतिबिंब भी है। “Foreign Policy” का शाब्दिक अर्थ है – वह नीति जिसके माध्यम से कोई राष्ट्र अन्य राष्ट्रों के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंधों को परिभाषित करता है।

भारत की विदेश नीति की विशेषता यह रही है कि इसमें निरंतरता और परिवर्तन दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक, भारत ने शांति, सहअस्तित्व और गुटनिरपेक्षता जैसे मूल्यों को बनाए रखा, किंतु समय के साथ बदलती परिस्थितियों ने उसे रणनीतिक गठबंधनों, आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक शक्ति-संतुलन की राजनीति की ओर भी प्रेरित किया।




1. ऐतिहासिक जड़ें : प्राचीन और मध्यकालीन भारत

भारत की विदेश नीति का आधार केवल आधुनिक काल में नहीं बल्कि प्राचीन काल से मिलता है।

अशोक और धम्म नीति : मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में “धम्म विजय” को अपनाया और पड़ोसी राज्यों के साथ संबंधों में शांति और सहअस्तित्व को बढ़ावा दिया। बौद्ध धर्म के प्रसार ने एशियाई देशों में भारत की सॉफ्ट पावर को स्थापित किया।

मध्यकालीन भारत : इस्लाम, सूफीवाद और व्यापारिक संबंधों ने पश्चिम एशिया तथा मध्य एशिया से भारत के रिश्तों को प्रभावित किया।

सभ्यतागत दृष्टिकोण : भारतीय परंपरा “वसुधैव कुटुंबकम्” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” जैसे विचारों पर आधारित रही, जिसने भारत को विश्व शांति और मानव कल्याण का पक्षधर बनाया।





2. औपनिवेशिक काल और विदेश नीति पर प्रभाव

1757 से 1947 तक भारत ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश था। इस दौरान भारत की कोई स्वतंत्र विदेश नीति नहीं थी।

ब्रिटेन ने भारत की भौगोलिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति का उपयोग अपने साम्राज्य विस्तार के लिए किया।

दोनों विश्वयुद्धों में भारतीय सैनिकों की भागीदारी भारत की स्वतंत्र इच्छा से नहीं, बल्कि ब्रिटिश नीतियों के कारण थी।

हालांकि इस काल में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने स्पष्ट कहा कि स्वतंत्र भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाएगा।





3. स्वतंत्रता संग्राम और विदेश नीति की वैचारिक नींव

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही भारतीय नेताओं ने विदेश नीति के सिद्धांतों पर विचार किया।

महात्मा गांधी : उन्होंने सत्य, अहिंसा और नैतिकता को राजनीति ही नहीं, विदेश संबंधों का भी आधार बताया।

जवाहरलाल नेहरू : अंतरराष्ट्रीयतावादी दृष्टिकोण रखते थे। वे गुटनिरपेक्षता, उपनिवेशवाद विरोध और शांति के समर्थक थे।

सुभाष चंद्र बोस : उन्होंने यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए माना कि भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए रणनीतिक सहयोग करना चाहिए।





4. स्वतंत्र भारत की विदेश नीति : नेहरू युग (1947–1964)

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्वयं विदेश मंत्री भी थे। उन्होंने भारत की विदेश नीति की नींव रखी।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) : शीत युद्ध की दो ध्रुवीय राजनीति (अमेरिका बनाम सोवियत संघ) से दूरी रखते हुए भारत ने स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई।

पंचशील सिद्धांत : 1954 में चीन के साथ हुए समझौते में पंचशील (शांति से सहअस्तित्व के 5 सिद्धांत) को महत्व दिया गया।

औपनिवेशिक-विरोध : भारत ने एशिया और अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन किया।

संयुक्त राष्ट्र में भूमिका : भारत ने शांति सैनिक मिशनों में सक्रिय भागीदारी की।





5. इंदिरा गांधी युग (1966–1984)

इंदिरा गांधी के समय विदेश नीति में यथार्थवाद (Realism) बढ़ा।

1971 का बांग्लादेश युद्ध : भारत ने निर्णायक भूमिका निभाई और पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए।

सोवियत संघ से करीबी : 1971 में भारत-सोवियत मैत्री संधि हुई।

परमाणु परीक्षण (1974) : “स्माइलिंग बुद्धा” के नाम से पहला परमाणु परीक्षण किया गया।





6. राजीव गांधी और शीत युद्ध का अंत (1984–1989)

आधुनिक तकनीक, कंप्यूटर और आईटी सहयोग पर ध्यान।

अमेरिका से संबंध सुधारने की शुरुआत।

श्रीलंका में शांति सेना भेजना (IPKF)।





7. 1991 के बाद का युग : उदारीकरण और वैश्वीकरण

आर्थिक सुधार (नरसिम्हा राव सरकार) : विदेश नीति में आर्थिक कूटनीति का महत्व बढ़ा।

“Look East Policy” : दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से सहयोग पर जोर।

अमेरिका और यूरोप से संबंधों का विस्तार।





8. वाजपेयी युग (1998–2004)

परमाणु परीक्षण (1998) : भारत को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।

लाहौर बस यात्रा और बाद में कारगिल युद्ध : शांति और यथार्थ का मिश्रण।

आईटी डिप्लोमेसी : भारत की सॉफ्ट पावर को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।





9. मनमोहन सिंह युग (2004–2014)

भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (2008) : ऐतिहासिक मोड़, जिसने भारत को वैश्विक परमाणु व्यवस्था में वैध दर्जा दिलाया।

आर्थिक विकास और वैश्विक निवेश को विदेश नीति का प्रमुख अंग बनाया।





10. मोदी युग (2014–वर्तमान)

Neighbourhood First Policy और Act East Policy को सक्रिय किया।

सॉफ्ट पावर और प्रवासी भारतीयों से संपर्क।

ग्लोबल मंचों पर सक्रियता : G20, BRICS, QUAD आदि में भारत की अग्रणी भूमिका।

रणनीतिक स्वायत्तता : रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भारत ने किसी एक ध्रुव का पक्ष न लेकर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी।





11. निरंतरता और परिवर्तन

निरंतरता : शांति, सहअस्तित्व, गुटनिरपेक्षता, विकासशील देशों से सहयोग।

परिवर्तन :

1962 के बाद सुरक्षा दृष्टिकोण।

1971 के बाद क्षेत्रीय शक्ति की भूमिका।

1991 के बाद आर्थिक कूटनीति।

21वीं सदी में आतंकवाद, ऊर्जा सुरक्षा और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था पर ध्यान।






12. एस. जयशंकर द्वारा बताए गए भारत की विदेश नीति के 6 चरण

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भारत की विदेश नीति के विकास को 6 चरणों में विभाजित किया है :

1. 1947–1962 (आदर्शवाद और गुटनिरपेक्षता)

नेहरू के नेतृत्व में नैतिकता, शांति और गुटनिरपेक्षता पर बल।



2. 1962–1971 (सुरक्षा चिंताओं का उदय)

1962 के चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद सुरक्षा और रक्षा तैयारियों पर ध्यान।



3. 1971–1991 (क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत)

बांग्लादेश युद्ध, सोवियत संघ के साथ करीबी, और परमाणु परीक्षण।



4. 1991–1998 (आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण)

Look East Policy और नई आर्थिक नीति ने विदेश नीति को आर्थिक दृष्टि से जोड़ा।



5. 1998–2014 (रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीय विश्व)

वाजपेयी से मनमोहन सिंह तक—परमाणु शक्ति, अमेरिका के साथ निकटता, और वैश्विक बहुध्रुवीय राजनीति में सक्रियता।



6. 2014–वर्तमान (नए भारत की विदेश नीति)

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रवासी भारतीयों, वैश्विक मंचों पर नेतृत्व, पड़ोस नीति, क्वाड और हिंद-प्रशांत रणनीति पर जोर।

भारत को “Vishwa Guru” और “Leading Power” बनाने का प्रयास।







निष्कर्ष

भारत की विदेश नीति का सफर आदर्शवाद से यथार्थवाद, गुटनिरपेक्षता से रणनीतिक स्वायत्तता और विकासशील देशों की एकजुटता से वैश्विक नेतृत्व तक का रहा है।
एस. जयशंकर के 6 चरण इस विकास यात्रा को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं—जहाँ प्रत्येक चरण में भारत ने अपनी सीमाओं और अवसरों के अनुसार विदेश नीति को ढाला।

आज भारत की विदेश नीति का मूल मंत्र है—
👉 “राष्ट्रहित सर्वोपरि” (National Interest First),
जिसमें शांति और सहअस्तित्व की परंपरा भी है और 21वीं सदी के वैश्विक नेतृत्व की महत्वाकांक्षा भी।

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