भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12

Written by:



1. पृष्ठभूमि : “राज्य” की अवधारणा

अनुच्छेद 12 को समझने से पहले हमें यह जानना होगा कि सामान्यतः “राज्य” शब्द का क्या अर्थ होता है।

राजनीतिक सिद्धांतकारों की परिभाषाएँ

मैक्स वेबर ने राज्य को ऐसा राजनीतिक संगठन माना है जिसके पास एक निश्चित क्षेत्र में वैध बल प्रयोग का एकाधिकार होता है।

अरस्तू ने राज्य को ऐसी राजनीतिक संस्था कहा जो नागरिकों के सर्वोच्च कल्याण के लिए अस्तित्व में आती है।

आधुनिक राजनीतिक विज्ञान में राज्य के चार आवश्यक तत्व माने जाते हैं :

1. जनसंख्या

2. निश्चित क्षेत्रफल (Territory)

3. सरकार

4. संप्रभुता (Sovereignty)





इस प्रकार सामान्य राजनीतिक विज्ञान में “राज्य” का अर्थ एक व्यापक राजनीतिक इकाई से होता है।


2. संवैधानिक दृष्टि : अनुच्छेद 12 में राज्य

भारतीय संविधान में “राज्य” शब्द का प्रयोग राजनीतिक सिद्धांत की तरह व्यापक अर्थों में नहीं हुआ है। अनुच्छेद 12 इसके लिए एक विशिष्ट और कार्यात्मक परिभाषा प्रदान करता है, जो केवल भाग III (मौलिक अधिकारों) के लिए लागू होती है।

अनुच्छेद 12 का पाठ :
“इस भाग में, जब तक संदर्भ अन्यथा न हो, राज्य में भारत सरकार और संसद तथा प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल और भारत की सरकार के नियंत्रण में भारत के क्षेत्र में सभी स्थानीय अथवा अन्य प्राधिकरण सम्मिलित होंगे।”

अनुच्छेद 12 की विशेषताएँ

1. यह एक समावेशी परिभाषा है – पूर्ण (Exhaustive) नहीं। इसमें “includes” शब्द प्रयुक्त है जिसका अर्थ है कि न्यायालय इसकी सीमा का विस्तार कर सकते हैं।

2. इसमें शामिल हैं –

भारत सरकार

संसद (केंद्रीय विधायिका)

राज्य सरकारें

राज्य विधानमंडल

स्थानीय प्राधिकरण (नगर पालिका, पंचायत आदि)

“अन्य प्राधिकरण” – एक खुला वर्ग, जिसकी व्याख्या न्यायपालिका करती है।



3. उद्देश्य :



यह निर्धारित करना कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए किन निकायों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।



👉 इस प्रकार अनुच्छेद 12 मौलिक अधिकारों की कार्यान्वयन की प्रवेश-द्वार धारा है। यदि कोई संस्था “राज्य” मानी जाती है तो उसके कार्यों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।


3. अंतर : राजनीतिक सिद्धांत बनाम अनुच्छेद 12




राजनीतिक विज्ञान में : राज्य एक संप्रभु राजनीतिक सत्ता है।

अनुच्छेद 12 में : “राज्य” कोई भी ऐसी संस्था या प्राधिकरण है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित कर सकती है।


इससे स्पष्ट है कि अनुच्छेद 12 केवल संप्रभु सत्ता तक सीमित नहीं है, बल्कि अर्ध-सरकारी निकायों, सांविधिक निगमों और यहाँ तक कि निजी संस्थाओं पर भी लागू हो सकता है यदि वे सार्वजनिक कार्य कर रहे हों।


4. न्यायिक व्याख्या : प्रमुख निर्णय

(a) राजस्थान विद्युत बोर्ड बनाम मोहन लाल (1967)


यह पहला महत्वपूर्ण मामला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांविधिक निकाय (Statutory Body) जैसे विद्युत बोर्ड भी “राज्य” की परिभाषा में आते हैं।

कारण : यह कानून द्वारा स्थापित था, नियम बनाने की शक्ति रखता था और जनहित से जुड़े कार्य करता था।


👉 महत्व : इसने सांविधिक निगमों को अनुच्छेद 12 में लाने का मार्ग प्रशस्त किया।


(b) अजय हसिया बनाम खालिद मुजीब (1981)



प्रश्न था कि क्या सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत एक सोसायटी (जो सरकारी धन से चल रही इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित कर रही थी) “राज्य” मानी जाएगी।

न्यायालय ने कुछ मापदंड (Tests) दिए :

1. क्या पूरा पूंजी निवेश सरकार का है?


2. क्या सरकार का गहरा और व्यापक नियंत्रण है?


3. क्या निकाय को कानून द्वारा एकाधिकार प्राप्त है?


4. क्या वह सार्वजनिक महत्व के कार्य करता है जो सामान्यतः सरकार करती है?


5. क्या यह संस्था किसी क़ानून से स्थापित हुई है?




👉 महत्व : यह सिद्ध हुआ कि गैर-सांविधिक निकाय भी “राज्य” हो सकते हैं यदि सरकार का उस पर गहरा नियंत्रण हो।


(c) प्रदीप कुमार बिस्वास बनाम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ केमिकल बायोलॉजी (2002, सात न्यायाधीशों की पीठ)



इसमें यह प्रश्न उठा कि क्या वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) “राज्य” है।

न्यायालय ने कहा कि हाँ, क्योंकि सरकार उस पर गहरा और व्यापक नियंत्रण रखती है।


👉 महत्व : यहाँ यह सिद्धांत स्पष्ट हुआ कि संस्थान का संगठनात्मक रूप नहीं बल्कि उस पर सरकार का वास्तविक नियंत्रण निर्णायक है।


5. निष्कर्ष


अनुच्छेद 12 भारतीय संविधान की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह यह तय करता है कि किन संस्थाओं पर मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए कार्रवाई की जा सकती है। न्यायालयों ने समय-समय पर इसकी व्याख्या कर इसके दायरे को व्यापक बनाया है ताकि नागरिकों के अधिकार केवल सैद्धांतिक न रहें बल्कि व्यावहारिक रूप से भी सुरक्षित हों।

👉 इस प्रकार अनुच्छेद 12 नागरिकों की इस आश्वस्ति का प्रतीक है कि कोई भी शक्ति—सरकारी हो या अर्ध-सरकारी—यदि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगी, तो उसे संविधान के समक्ष जवाबदेह होना पड़ेगा।

Leave a comment