भारतीय संविधान की उद्देशिका: इतिहास, अर्थ और महत्व

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भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) केवल एक औपचारिक प्रस्तावना नहीं है — यह संविधान की आत्मा है। कुछ संक्षिप्त लेकिन गंभीर शब्दों में यह हमारे संविधान निर्माताओं की दृष्टि, मूल्यों और आदर्शों को अभिव्यक्त करती है, जिसने विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान तैयार किया।

इस लेख में हम जानेंगे:

उद्देशिका का ऐतिहासिक संदर्भ

उसका वास्तविक अर्थ और महत्व

उसमें निहित चार प्रमुख तत्त्व

26 जनवरी 1950 की ऐतिहासिक तिथि का चयन क्यों हुआ

और संविधान अपनाए जाने के दो महीने बाद ही लागू क्यों हुआ





उद्देशिका का ऐतिहासिक संदर्भ

उद्देशिका का विचार बिल्कुल नया नहीं था। अमेरिकी संविधान में भी एक उद्देशिका है, और भारत की संविधान सभा ने कई वैश्विक स्रोतों से प्रेरणा ली। यद्यपि संविधान निर्माण की प्रक्रिया के अंत में इसकी चर्चा हुई, लेकिन इसका आत्मिक प्रभाव प्रारंभ से ही समस्त बहसों पर रहा।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने प्रारंभ में कहा था कि उद्देशिका को संविधान के पूर्ण होने के बाद लिया जाना चाहिए। लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू और बी.एन. राव जैसे नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि उद्देशिका की भावना पूरे संविधान को दिशा दे।

👉 उद्देशिका का प्रारूप पंडित नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ (Objective Resolution) के रूप में प्रस्तुत किया था, जिसे 22 जनवरी 1947 को अपनाया गया।

👉 अंतिम रूप से 26 नवम्बर 1949 को संविधान के साथ उद्देशिका को भी अंगीकृत कर लिया गया।
👉 लेकिन इसे लागू किया गया 26 जनवरी 1950 को — जो भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण तिथि है।




उद्देशिका का अर्थ और महत्व

उद्देशिका संविधान का प्रस्तावना वक्तव्य है, जो कहती है:

> “हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए… न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता सुनिश्चित करने के लिए यह संविधान आत्मार्पित करते हैं।”



यह उद्घोष करता है:

1. संविधान का स्रोत कौन है — भारत की जनता


2. भारत को कैसा राष्ट्र बनाना है — सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य


3. संविधान किन लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है — न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता



यह केवल शब्द नहीं हैं — ये भारतीय राष्ट्र की संवैधानिक आत्मा और मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।




उद्देशिका के चार प्रमुख तत्त्व

1. शक्ति का स्रोत: “हम भारत के लोग…”

इस वाक्य से स्पष्ट होता है कि संविधान जनता द्वारा, जनता के लिए बनाया गया है। यह किसी राजा या ब्रिटिश संसद की कृपा नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संप्रभुता का प्रतीक है।

2. भारतीय संविधान की प्रकृति

उद्देशिका भारत को निम्नलिखित स्वरूप में प्रस्तुत करती है:

सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न (Sovereign): भारत पूरी तरह स्वतंत्र है, किसी विदेशी शक्ति का अधीन नहीं।

समाजवादी (Socialist): आर्थिक और सामाजिक समानता का लक्ष्य।

पंथनिरपेक्ष (Secular): राज्य सभी धर्मों से समदूरी रखता है, न किसी धर्म का विरोध करता है, न समर्थन।

लोकतांत्रिक (Democratic): जनता द्वारा चुनी गई सरकार।

गणराज्य (Republic): राष्ट्र प्रमुख (President) जनता द्वारा निर्वाचित होता है, कोई वंशानुगत राजा नहीं होता।


3. संविधान के उद्देश्य

उद्देशिका भारत को निम्नलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति का वचन देती है:

न्याय (Justice): सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता।

स्वतंत्रता (Liberty): विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता।

समता (Equality): सभी नागरिकों को समान अवसर और दर्जा।

बंधुता (Fraternity): व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करना।


4. अंगीकरण की तिथि: 26 नवम्बर 1949

यद्यपि उद्देशिका को संविधान के साथ 26 नवम्बर 1949 को अपनाया गया, इसे लागू किया गया 26 जनवरी 1950 को।




26 जनवरी क्यों चुनी गई?

26 जनवरी 1930 को लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज’ (Complete Independence) की घोषणा की थी।

👉 उस दिन को चिह्नित करने के लिए संविधान लागू करने की तिथि भी 26 जनवरी रखी गई।
👉 यह केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक घोषणा थी — अब भारत केवल स्वतंत्र नहीं, बल्कि संवैधानिक रूप से स्वशासित गणराज्य बन गया था।




संविधान दो महीने बाद लागू क्यों हुआ?

यद्यपि संविधान को 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत कर लिया गया था, लेकिन इसे पूरा लागू करने में दो महीने का समय लगा, उसके पीछे कुछ कारण थे:

1. प्रशासनिक तैयारी: केंद्र और राज्यों में संविधान के अनुरूप ढांचा बनाना था।


2. राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।


3. ब्रिटिश प्रभुता का अंतिम समापन: भारत अब गणराज्य था — किसी भी विदेशी सत्ता से पूर्णतः स्वतंत्र।






निष्कर्ष: आज भी क्यों महत्वपूर्ण है उद्देशिका?

यद्यपि उद्देशिका न्यायालय में लागू करने योग्य नहीं है, लेकिन यह संवैधानिक व्याख्या का आधार है।

👉 सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में कहा कि उद्देशिका संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा है।

यह हमें यह याद दिलाती है कि भारत किन मूल्यों पर खड़ा है — और किस दिशा में बढ़ना चाहता है। जब भी भारत को सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक संकट का सामना होता है, उद्देशिका एक नैतिक मार्गदर्शिका बनकर सामने आती है।

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